Friday, August 13, 2010

यादें कुछ पल की

तनहाइयाँ अब कटती नहीं , आ जाओ यारों मेरे साथ ,
थोड़ी सी कर ले आओ मस्ती , थोडा सा कर ले आओ प्यार ,
कुछ दिन बचे अब डिग्री के , आओ मौज कर लो यार ,
थोड़े ही दिन में कौन कहाँ है ,कोई न होगा किसी के साथ ,
होंगे न अब हम साथ तुम्हारे , आ जाओ यारों कर ले बात ,
होंगी न राते वो बरसाते , घूमे जब हम सब एकसाथ ,
कोई न होगा पास किसी के , रह जाएँगी बस यादे चार

बीती बात भुला दो

तेरा चेहरा खुली किताब , हँसे जब तू महके गुलाब ,
तुझे देखकर सूर्य है ढलता , तुझे देखकर चाँद निकलता ,
तू छूले तो खिलती कलियाँ , तू निकले तो महके गलियां ,
तेरी आवाज़ की बात निराली , जैसे गाती कोयल काली ,
तेरे हाथो में जादू इतना , तस्वीर में भर दे जीवन जितना ,
तेरी आँखें है सागर जैसी , देखूं तो छाए मदहोसी ,
तेरे भजनों ने मधुर है सरगम , तेरी बातों में गीत का संगम ,
तेरी चाल है मन को भाती , तेरी आवाज़ दिल को छू जाती ,
यह तारीफे न काबिल तेरे , क्योकि कई है खूबी तुझमे ,
बस एक ही है अब मुराद , भूल जाओ वो बीती बात ,
कर लो हमसे फिर दोस्ती , आओ करे एक नई शुरुवात

Tuesday, August 10, 2010

तुम

सूरज की पहली किरण सी हो तुम ,

चंदा की शीतलता के जैसी हो तुम ,

पतझड़ में सावन की तरह हो तुम ,

छलिया की माया के जैसी हो तुम ,

मेरे सपनो की काया भी तुम ,

सूखे में वर्षा की तरह हो तुम ,

मेरे जीवन का अर्थ हो तुम ,

और जीवन का तर्क भी तुम ,

मुझसे प्यासे का पानी हो तुम ,

ईश्वर के कंठ की माला हो तुम ,

मंदिर के दीपक की ज्योति हो तुम ,

ज्योति की तरह पवित्र हो तुम ,

मेरे लिए मेरी साँसे हो तुम ,

मेरे दिल का अरमान भी तुम ,

मेरे लिए मेरी वृधि हो तुम ,

जीवन में मेरे बस तुम हे हो तुम

Monday, August 9, 2010

सावन

सावन का मौसम आया मेरे हमदम , बारिश की बूंदे भी करती है छमछम ,
यादे भी मुझको तेरी आती है पल-पल , दिल में मचा जाती है यह हलचल ,
मन में उठते है तूफ़ान ऐसे , करदे दे न ख्वाबो को चकनाचूर जैसे ,
पर सावन आया तो खुशियाँ लाया ,दिल में सबके प्यार जगाया ,
धरती हुई रंगीन नवेली , लगता सायद आई होली ,
गाते है पंची , खिलती है कलियाँ , गोरी की पायल से गूंजी है गलियां ,
सावन आते ही खिल गए है चेहरे , टूटे हो जैसे बरसो के पहरे ,
मन में जगी एक नई सी उमंग , सावन के आते ही बाजे मृदंग ,
सब लोग झूमे नाचे गाये गीत , पतझड़ के जाते ही सावन की जीत

आँखें सागर सी

सागर जैसी आँखें तेरी ,मदहोशी देख कर छाती है ,

चेहरे से तेरे प्यार झलकता ,फिर भी क्यों ख़ामोशी है ,

लगता तेरी आँखें बंद है ,तभी नहीं उजाला है ,

सूरज भी तब ही आता है ,जब आँख तेरी खुल जाती है ,

आँखें नहीं यह स्वर्ग है मेरा ,जिसमे मैं खो जाता हूँ ,

इन्हें देखकर मेरे दिल में ,हलचल सी मच जाती है ,

इन्हें देख बिन दिन नहीं कटता ,और कही भी मन नहीं लगता ,

बीती याद जब आती मुझको ,याद तुम्हारी आती है

Saturday, August 7, 2010

अँधेरा और सच

अँधेरा-अँधेरा उजाला नहीं है ,
उजाला भी होता तो गमगीन थे हम ,
ग़मों से तो अपना है रिश्ता पुराना ,
ग़मों में ख़ुशी समृद्धि मिलती नहीं है ,
अँधेरा-अँधेरा ......, उजाला भी होता तो ………….,
टूटी सी कस्ती में बैठे हुए हम ,
किनारे को ढूंढें किनारा नहीं है ,
कई लोग कहते है ग़मों को भुला दो ,
जीवन में होता है ग़म एक हिस्सा ,
पर मैं लोगों को कैसे बताऊ ,
ग़म का हिस्सा यह जीवन बन चूका है ,
अँधेरा-अँधेरा ……, उजाला भी होता तो ………..,
एक प्यारा सा सपना सजाया था हमने ,
अरमान कई थे जो दिल में बसाए ,
पर सपने तो होते है एक छलावा ,
सपने कभी सच होते नहीं है ,
अँधेरा-अँधेरा उजाला नहीं है ,
उजाला भी होता तो ग़मगीन थे हम

चाहता हूँ


हजारों मुश्किलें और कई फ़ासले है राहो में ,
पर मैं अपनी मंजिल को पाना चाहता हूँ ,
बस ज्यादा कुछ नहीं , मैं अपनी डिग्री अच्छी बनाना चाहता हूँ ,
पढाई में लगता नहीं मन मेरा ,
फिर भी मैं अब पढना चाहता हूँ ,
कई इम्तिहान आये जिन्दगी में ,
पर मैं सफल हुआ न ,
इन इम्तिहानो से मैं निजात चाहता हूँ ,
नंबर नहीं आते , पढाई के बावजूद ,
मैं जीवन के हर इम्तिहान में अव्वल आना चाहता हूँ ,
हार -हार कर थक सा गया हूँ ,
पर अब मैं जीतना चाहता हूँ ,
मेरा भी नाम हो इस दुनिया में ,
ऐसा अब मैं कुछ करना चाहता हूँ ,
बस ज्यादा कुछ नहीं , मैं अपनी डिग्री अच्छी बनाना चाहता हूँ .